गजल: विनोद तिवारी
वह मेरे विपरीत नहीं है
लेकिन मेरा मीत नहीं है
अंत काल तक साथ निभाना
यह दुनिया की रीत नहीं है
इस बस्ती में सब डरते हैं
कौन है जो भयभीत नहीं है
मुंह देखे मीठी बाते हैं
लेकिन सच्ची प्रीत नहीं है
जो अंतरतम से निकला हो
गीत नहीं है, संगीत नहीं है
बने हुए हैं सभी विजेता
पर कोई जगजीत नहीं है