कोना धरती का और राग केदार के स्वर
भारत भवन से लौटते हुए सोच रहा था, हमारे देश ने विज्ञान और तकनीक की दृष्टि से उल्लेखनीय सफलताएं अर्जित की हैं । पर क्या देश वैज्ञानिक चेतना से लैस हो पाया है ? आखिर वैज्ञानिक चेतना का वास्तविक अर्थ क्या है ? कौन करेगा जनमानस में वैज्ञानिक चेतना का बीजारोपण ? क्या वह दिन आएगा जब हम वास्तविक अर्थाें में प्रगतिशील कहला पाएंगे ।
ये सारे सवाल संतोष चाौबे जी के कविता संग्रहों कोना धरती का और इस अ-कवि समय में के विमोचन कार्यक्रम के बहाने उपजे । शुरूआत उन्हें बधाई देते हुए करते हैं । संतोष जी के पास साहित्य के अलावा विज्ञान -तकनीकी, साक्षरता और जनविज्ञान आंदोलन के विशद अनुभव हैं । जाहिर है बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी चाौबे जी साहित्य के लिए धरोहर हैं क्योंकि मूलतः वे साहित्य के ही हैं । इतने क्षेत्रों का उनका अनुभव बताता है कि उनके पास कविता बनाने के कई औज़ार हैं । इन औजारों का इस्तेमाल वे करीने और किफायत से करते हैं । कला के विविध रूप आदमी की सोच और विज़न को गढ़ते हैं । जिस वैज्ञानिक चेतना के बीजारोपण की हम बात करते हैं वह कला ही संभव बना सकती है । संतोष जी कला की इस भूमिका को पहचानते हैं और बहुत बारीकी से वे इस दायित्व का निर्वाह करते दीखते भी हैं ।
आज की बातें उनके परिष्कृत-सवंर्धित कविता संग्रह ’कोना धरती का‘ पर हो रही हैं । इसे यथासमय उपलब्ध कराया है मेधा बुक्स के भाई अजय कुमार ने ।
इन दिनों थ्री इडियट्स फिल्म ने जो लहर पैदा की है, वह काम संतोष जी बहुत पहले कर चुके हैं । इसकी बानगी देती है उनकी एक महत्वपूर्ण कविता ’सफलता आक्रांत करती है ‘। यह कविता हमारी शिक्षा व्यवस्था में निर्णय लेने की प्रक्रिया में दिल के बजाय दिमाग को तरजीह दिए जाने के दंश का खुलासा करती है । चाौबे जी आगे के समय और समाज को पढ़ लेने के हुनर को साधने का माद्दा भी रखते हैं । साक्षरता के संदर्भ में दो कविताएं और विद्यादेवी का स्वप्न ऐसी ही कविताएं हैं । संवेदना की बारिश बहस, सच नहीं बदलता अविश्वास से कविताएं कवि के वास्तविक श्रम और घनीभूत संवेदनाओं का पता बताती हैं । संतोष चाौबे जी की कविताएं श्रम के मूल्य की कीमत पर कोई भी समझौता न करने वाली कविताएं हैं । पुस्तक में उल्लेखित रामप्रकाष त्रिपाठी जी के कथन से सहमत होकर कहा जा सकता है कि इस संग्रह की कविताएं बड़बोलेपन से मुक्त हैं । इन कविताओं में व्यक्तिगत दुराग्रह, समाज समस्या और देष के प्रति आरोपों, षिकायतों की पोटली नहीं है । ’कोना धरती का‘ संग्रह की कविताएं एकांतिक प्रलाप करने वाली कविताओं के षोर में संवेदना के फलक को उस हद तक विस्तारित करने के पक्ष में है जहां से धरती का हर कोना तरंगित हो सके । इस समर्थ कवि-कथाकार को और उसकी अतींद्रिय दृष्टि को षुभकामनाएं ।
- राग तेलंग
कृति: कोना धरती का
कवि: संतोष चाौबे
प्रकाषक: मेधा बुक्स, दिल्ली
वर्ष: 2010
मूल्य: रू 150
Thursday, February 25, 2010
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