Thursday, August 20, 2009

कविता

कथन :

विज्ञान और कला में ये फ़र्क नहीं है कि वे अलग-अलग वस्तुओं या विषयों से संबंध रखते हैं बल्कि यह है कि वे उन्हीं विषयों से अलग-अलग तरह का व्यवहार करते हैं । विज्ञान हमें किसी परिस्थिति के बारे में सैद्धांतिक ज्ञान प्रदान करता है जबकि कला इस परिस्थिति में होने वाली अनुभूति का, जो विचारधारा के समतुल्य है । ऐसा करते हुए वह हमें विचारधारा के वास्तविक चरित्र से अवगत कराता है और इस तरह हमें उसकी संपूर्ण समझ की ओर ले चलता है तो इस विचारधारा का भी वैज्ञानिक ज्ञान है ।

संतोष चौबे द्वारा अनूदित टैरी इगल्टन के एक पाठ का अंश


टूटती है सदी की खामोशी


टूटती है सदी की खामोशी,
फिर कोई इन्क़लाब आएगा ।

माालियो, तुम लहू से सींचो तो,
बाग़ पर फिर शबाब आएगा ।

सारा दु:ख लिख दिया भविष्यत् को,
मेरे ख़़त का जवाब आएगा ।

आज गर तीरगी है िक़स्मत में,
कल कोई आफ़ताब आएगा ।

विनोद तिवारी, अध्यक्ष,जलेस कोलार भोपाल

निराशा

निराशा एक बेलगााम घोड़ी है

न हाथ में लगाम होगी न रकाब में पांंंव
खेल नहीं उस पर गद्दी गांंंठना
दुलत्ती झाड़ेगी और जमीन पर पटक देगी
बिगाड़ कर रख देगी सारा चेहरा मोहरा

बगल में खड़ी होकर
जमीन पर अपने खुर बजाएगी
धूल के बगूले बनाएगी
जैसे कहती हो
दम है तो दुबारा गद्दी गांठो मुझ पर

भागना चाहोगे तो भागने नहीं देगी
घसीटते हुए ले जाएगी
और न जाने किन जंगलों में छोड़ आएगी !

राजेश जोशी

नव वर्ष

दिन भर आटे का मीजान बांधते मजूर,
पेड़ों की ओट
अंधेरे में बफ़Z की रात काटते भील
बतियाते बतियाते
सो गए हैं गहरी नींद

नशे में धुत रात,जश्न
गजर बारह का
कोई भी तोड़ नहीं पाया
हाड़-तोड़ दिहाड़ी से टूटे जिस्म की नींद

पुश्तैनी हांडी वहीं पड़ी रही, ख़ामोश ।

रतन चौहान