जब भी लिखो अंगार लिखो
गीत भले दो चार लिखो
जब भी लिखो अंगार लिखो
नदी नांव संयोग लिखो तो
भंवर लिखो पतवार लिखो
सूखी धरती के आंंचल पर
कुछ तो मेघ मल्हार लिखो
धन धरती के बंटवारे पर
श्रम को भी हकदार लिखो
इक दिन टूटेंगी जंज़ीरें
चोटें बारंबार लिखो
गर मनुष्य की कथा लिखो तो
दर्दाें से साभार लिखो
अब तक नहीं लिखा यदि तुमने
तो अवश्य इस बार लिखो
•शिवकुमार अर्चन