Friday, August 21, 2009

कविता

जब भी लिखो अंगार लिखो

गीत भले दो चार लिखो
जब भी लिखो अंगार लिखो

नदी नांव संयोग लिखो तो
भंवर लिखो पतवार लिखो

सूखी धरती के आंंचल पर
कुछ तो मेघ मल्हार लिखो

धन धरती के बंटवारे पर
श्रम को भी हकदार लिखो

इक दिन टूटेंगी जंज़ीरें
चोटें बारंबार लिखो

गर मनुष्य की कथा लिखो तो
दर्दाें से साभार लिखो

अब तक नहीं लिखा यदि तुमने
तो अवश्य इस बार लिखो

शिवकुमार अर्चन