Saturday, November 21, 2009

गजल: जहीर कुरेषी

गजल: जहीर कुरेषी



मुस्कुराना भी एक चुम्बक है
मुस्कुराओ अगर तुम्हें शक है ।


उसको छू कर कभी नहीं देखा
उससे संबंध बोलने तक है ।


डाॅक्टर की सलाह से लेना
ये दवा भी जहर-सी घातक है ।


दिन में सौ बार खनखनाती है
एक बच्चे की बंद गुल्लक है ।


उससे उड़ने की बात मत करना
वो जो पिंजड़े में आज बंधक है ।


हक्का-बक्का है बेवफा पत्नी
पति का घर लौटना, अचानक है ।


‘स्वाद’ को पूछना है ‘बंदर’ से
जिसके हाथ और मुंह में ‘अदरक’ है ।



ऽ जहीर भाई जलेस ग्वालियर के सचिव हैं ।