गजल: जहीर कुरेषी
मुस्कुराना भी एक चुम्बक है
मुस्कुराओ अगर तुम्हें शक है ।
उसको छू कर कभी नहीं देखा
उससे संबंध बोलने तक है ।
डाॅक्टर की सलाह से लेना
ये दवा भी जहर-सी घातक है ।
दिन में सौ बार खनखनाती है
एक बच्चे की बंद गुल्लक है ।
उससे उड़ने की बात मत करना
वो जो पिंजड़े में आज बंधक है ।
हक्का-बक्का है बेवफा पत्नी
पति का घर लौटना, अचानक है ।
‘स्वाद’ को पूछना है ‘बंदर’ से
जिसके हाथ और मुंह में ‘अदरक’ है ।
ऽ जहीर भाई जलेस ग्वालियर के सचिव हैं ।