Monday, March 15, 2010

अमिताभ मिश्र की तीन कविताएं

देखो तो सही खड़े हो कर एक साथ

तुम जो उठाते हो हथियार वह भी तो वही उठाता है हथियार
जो तलवार जितनी धारदार तुम्हारी है उतनी ही वह उसकी भी है
जैसे बल्लम भाले कट्टे, बम वगैरा तुम्हारे हंै
वैसे के वैसे बल्कि वही के वही उसके भी हैं
एक ही दूकानदार से खरीदे हुए
जो चमक, लपट, भभक, तम्हारी लगाई हुई आग में है
उतनी ही और वैसी ही चमक, लपट, भभक उसकी लगाई आग में है
कहां है फर्क तुम में और उसमें
जैसे बाल तुम्हारे जैसी खाल तुम्हारे
जैसे हाथ पांव दिल दिमाग तुम्हारे
वैसा ही वैसा ही तो सब कुछ है उसके भी पास
फिर क्या है
वह क्या है
जो तुम्हारी और उसकी आंख में
नफरत एक साथ एक बराबर रख देता है
फर्क तो उन भवनों में भी कछ खास नही है
जो हैं उपासनागृह तुम्हारे और उसके
मतलब और मकसद भी एक ही हैं
तुम्हारी और उसकी प्रार्थना के तुम्हारे और उसके धरम के
फिर क्या है
वह क्या है
जो चढ़ा देता है गुम्बद पर एक को
फिंकवा देता हैं मांस
क्या है
वह क्या है जो हकाल देता है तुम दोनों को
लड़ने को एक दूसरे के खिलाफ
एक जैसे ही दिल धड़कता है तुम्हारा भी और उसका भी
डर में नफरत में रफ्तार एक जैसी एक साथ ही तेज होती है
फिर क्या है, वह क्या है जो बोता है एक सा डर
तुम्हारे उसके दिलों में एक साथ एक दूसरे के खिलाफ
प्यार तुम जैसे करते हो वैसे ही वह भी करता है
दुःख भी तो हैं एक जैसे तुम्हारे के लिए भी उसके लिए भी
बहुत ज्यादा बहुत लंबे समय के लिए
सुख भी तो हैं बहुत कम एक ही जैसे दोनों के लिए
सब कुछ एक जैसा और लगभग
एक ही होने के बावजूद
क्या है! वह क्या है!
कौन है! वह कौन है!
कहाॅं है ! वह कहाॅं है!
जो बोता एक हाथ से नफरत, डर
काटता दूसरे से प्यार, हमदर्दी, भाईचारा
पर अब तो दिख रहा है चेहरा उसका साफ़ साफ़
अलग होता जा रहा है एक ही राग अलापता
दरअसल हिटलर फिर से वापस आया है
समय के साथ बुढ़ापे की विकृति ले कर
वही है, वही है
वैसा ही है, वैसा ही है वह
जो लगातार कोशिश में अलग करने की
तुमको उससे उसको तुमसे
तो होते क्यों नहीं एक
क्यों नहीं उठाते आवाज एक साथ
वहीं हां वही
आवाज दो हम एक हैं वाली आवाज
और एक जैसे एक साथ
रौंदते क्यों नहीं दिग्विजय के भ्रम को
एक जाति के तोड़ दो दुष्चक्र
काट दो वापस लौटाते काल के घोड़े की रासें
और देखो तो सही खड़े हो कर एक साथ
कि किस समय और कहां खड़े हो
तुम और वह एक साथ



सबसे बड़ी उमर

अपनी ही बराबरी के
उम्र के बच्चों को
घर से स्कूल लाती
स्कूल से घर छोड़ती
बच्ची की उम्र
दुनिया की सबसे बड़ी उमर है
वैसे भी उसका ब्याह तय हो चुका है
अपने से छः गुना उमर के मरद से
ब्याह के बाद होगी वह
किसी की मां किसी की बुआ
किसी की दादी
उसके मांग की सिन्दूर के लाल रंग की उमर
दुनिया की सबसे छोटी उमर है
और अनन्त काल तक सफेद रंग का
सच अपने भीतर समोए वह बच्ची
कब सचमुच औरत होगी
जिसकी उम्र दुनिया की
सबसे बड़ी उमर है ।



तीन सौ साठ बरस बाद

धरती तो तब भी घूम रही थी
जब गैलीलियो ने नहीं बताया था
और धरती तो अब भी घूम रही है
जब यह कहे हुए गैलीलियो को
तीन सौ साठ बरस से अधिक हो गए
इतने बरस बाद न धरती शर्मिन्दा
न गैलीलियो को कोई ग्लानि
न बचा वह उसके लिए
पर है चर्च आज
दी गई यातना पर गैलीलियो को
मंगवाई गई माफी गैलीलियो से
पर अब चर्च माफ कर रहा है
गैलीलियो को
मान रहा है धरती का घूमना
जो तब भी घूम रही थी
जब चर्च ने नही माना था

अमिताभ मिश्र:
सुपरिचित कवि और अप्रतिम कथाकार भी हैं । भोपाल में रहते हैं, जलेस के वरिष्ठ साथी ।