Wednesday, March 17, 2010

कुमार अंबुज का एक उल्लेखनीय वक्तव्य

देखता हूं कि प्रतिबद्धता को लेकर कुछ लोग इस तरह बात करते हैं मानो प्रतिबद्ध होना, कट्टर होना है । जबकि सीधी-सच्ची बात है कि प्रतिबद्धता समझ से पैदा होती है, कट्टरता नासमझी से । प्रतिबद्धता वैचारिक गतिषीलता को स्वीकार करती है , कट्टरता एक हदबंदी में अपनी पताका फहराना चाहती है । प्रतिबद्धता दृढ़ता और विष्वास पैदा करती है , कट्टरता घृणा और संकीर्ण श्रेष्ठि भाव । प्रतिबद्ध होने से आप किसी को व्यक्तिगत शत्रु नहीं मानते हैं, कट्टर होने से व्यक्तिगत शत्रुताएं बनती ही हैं । प्रतिबद्धता सामूहिकता में एक सर्जनात्मक औज़ार है और कट्टरता अपनी सामूहिकता में विध्वंसक हथियार । प्रतिबद्धता आपको जिम्मेवार नागरिक बनाती है और कट्टरता अराजक । जो प्रतिबद्ध नहीं होना चाहते हैं, वे लोग कुतर्कों से प्रतिबद्धता को कट्टरता के समकक्ष रख देना चाहते हैं ।