शब्दहीन संयम
1.आज फूल नहीं झरेंगे और
न ही शूल बाहर जाएंगे
शब्द प्रवेष से वंचित हैं
वे अपाहिज हैं बिना घटना के
न तो उन्होंने कुछ दिया और
न ही उनसे कुछ मिला
2.शून्य ने आसन जमाया है
कथ्य को बाहर का रास्ता दिखाया है
मेरे चक्रधारी ने भी अपना चाक नहीं घुमाया है
मेरी संवेदनाओं के साथ
मिट्टी को चाक पर नहीं जमाया है ,
3. सभी हाथों की क्रियाषीलता
निष्क्र्रियता आज अगढ़ है
कुंभकार को चक्रवर्ती कहूं तो कैसे कहूं
सब तो स्थिर है
पराकाष्ठा के स्वर कहते हैं ,
4.मैं घूम रहा हूं पृथ्वी के साथ
उसकी धुरी पर मेरे गांव की नदी
अपने जल के न्यूनतम षिखर तक चली गई है
एक नए अध्याय की तरह ,
5.ये नकारात्मक घटक
मेरे साथ क्यों आ रहे हैं
मां कहती है जल्दी सो जा
सुबह पानी लेने जाना है
सरकारी टैंकर आयेगा
पानी के बर्तन औंधे हैं
पेन्दी पेन्दी होती है
तली का एक और नाम ,
नवल जायसवाल: सुपरिचित चित्रकार और कवि हैं । जलेस कोलार इकाई भोपाल के शुभचिंतक और सहयोगी ।